आप सभी को अक्षय तृतीया एवं बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक बधाई। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इस समय चुनाव रूपी सामाजिक यज्ञ चल रहा है। ऐसे में हमें एक जागरूक नागरिक के तौर पर देखना होगा कि इस चुनावी यज्ञ में यजमान कैसी आहुतियां डाल रहे हैं। खासकर आधी दुनिया के संदर्भ में। पिछले अंक में मैंने चर्चा की थी ‘स्त्री शक्ति को सम्मान’ पर। लेकिन इस अंक में हमें नारी वेदना पर चर्चा करनी पड़ रही है, तो उसका कारण भी यह चुनाव रूपी सामाजिक यज्ञ ही है। यह तो निश्चित है कि समाज बचेगा, तभी धर्म बचेगा। यदि समाज कुपथगामी होगा, तो उस समाज को धर्मभ्रष्ट होते देर नहीं लगेगीइस चुनाव में पुरुषों ने नारी मन को बहुत वेदना दी है। काफी अभद्र एवं अपमानजनक शब्दों का प्रयोग हुआ है, जबकि कुछ दिन पहले तक ये ही पुरुष नारी उत्थान की बात कर रहे थे। संसद में, पार्टी फोरम पर स्त्रियों के लिए बराबरी के मौके की बात कर रहे थे।
आखिर हमारे समाज का यह कौन-सा विरोधाभास है, जो हमें अपने वचन पर कायम नहीं रहने दे रहा है। जबकि हमारा समाज नारीपूजक रहा है। हम शक्ति, शांति एवं समृद्धि के लिए देवियों की ही पूजा करते हैं। आदि शक्ति ने ही देवताओं को प्रकट किया हैतो फिर ऐसे समाज में स्त्रियों के प्रति अपमानजनक कथनों को हम किस रूप में देखें। और फिर उससे भी आगे का प्रश्न है कि बिना टकराव का रास्ता अपनाए स्त्रियों का अखंड मान-सम्मान कैसे सुनिश्चित किया जाए। क्योंकि टकराव से हासिल कुछ नहीं होगा। कम-से-कम मान-सम्मान तो कतई नहीं।
दरअसल हमें अपना ध्येय वाक्य याद रखना होगा- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमते तत्र देवता। शायद हम भूल गए हैं कि एक स्त्री को शिक्षित करना, पूरे परिवार को संस्कारवान् बनाने जैसा है। एक स्त्री का आत्मनिर्भर होना पूरे परिवार का आत्मनिर्भर होना है। जब स्त्रियों से उनके मौके छीने जाएंगे, साहसी महिलाओं को सार्वजनिक वेदना-प्रताड़ना देकर उन्हें जबरन घर में कैद होने को मजबूर किया जाएगा, तो हम निश्चय ही एक भीरू और दब्बू समाज का निर्माण करेंगे। एक तरफ यह खबर पढ़कर खुशी होती है कि पुरुषों की किकेट में महिलाओं को अंपायरिंग का मौका मिला है, दूसरी तरफ हम अपनी स्त्रियों से बराबरी के मौके छीन रहे हैं। क्या हम-आप ऐसा होने देंगे? जवाब तो नहीं है, लेकिन प्रयास कौन करेगा…?
ॐ पूर्णमिदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुच्चते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते |
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ।
जय श्री कृष्ण!
सूर्यपुत्री रश्मि मल्होत्रा मुख्य संपादक ओम्