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प्रेरणा अपने अंतस से लें

नई शुरुआत की प्रेरणा अपने अंतस से लें

सर्वप्रथम आप सभी सुधी पाठकों को क्रीसमस की हार्दिक बधाई एवं नववर्ष की अशेष शुभकामनाएं!

अभी-अभी हमने गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया है करतारपुर में सदेह जाकर मत्था टेककर। क्रीसमस पर हमारे ईसाई बंधु भी यही करेंगे चर्च जाकर। और अभी हिंदू अयोध्या जाकर शीश नवाने में जुटे हैं, जब से सुप्रीम कोर्ट ने वहां श्रीराम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। नववर्ष में हम सब अपने भीतर झांककर एक नई शुरुआत का लक्ष्य बनाते हैं और फिर उस दिशा में चल पड़ने का प्रण लेते हैं। 13 दिसंबर को मेरा जन्मदिन भी आता है। लिहाजा यह समय मेरे लिए भी एक नई शुरुआत का होता हैतब सवाल है कि नई शुरुआत की प्रेरणा हम कहां से लें? सर्वप्रथम तो मैं यही कहूंगी कि अपने अंतस से, अपनी चेतना से। हालांकि शुरुआत का कोई शुभ मुहुर्त नहीं होताकहते हैं न कि शुभस्य शीघ्रम्। अर्थात् जब इच्छा हो जाए, शुभ कार्य शुरू कर दीजिए| इसकी कोई शुभ वेला नहीं, मुहूर्त नहीं…

जीव के रूप में हमारी प्रकृति हो गई है कि हम सिर्फ अपने वर्तमान एवं अपने आस-पास जो हो रहा है, उससे ही प्रेरित या प्रभावित हो पाते हैं। जैसे कि दिल्ली वाले अभी स्मॉग से प्रभावित होकर कुछ-कुछ कर रहे हैं | ऐसे ही हम देखें तो कुछ दिनों पहले पूरे देश में करतारपुर एवं प्रकाश पर्व की धूम थी, जब यह पत्रिका आपके हाथ में होगी तब प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनाने की चर्चा होगी और महीने के अंत में जीसस के दिखाए रास्तों पर चर्चा हो रही होगी और फिर नववर्ष पर नई शुरुआत की।

यहां नाम अलग हैं, पंथ अलग हैं, अवसर (नववर्ष) अलग हैं, लेकिन संदेश एक ही है- नई शुरुआत। प्रभु श्रीराम, गुरुनानक देवजी, जीसस और नववर्ष सभी हमारे अंतस में यही चेतना जगाते हैं कि हे जीव, पुरानी मानसिक बाधाओं से परे नई शुरुआत का यही सबसे उपयुक्त समय है। और इस समय का आशय आप दिसंबर महीने से नहीं लगाएं, यही समय मतलब हमारा-आपका वर्तमान। अर्थात् वर्तमान किसी भी शुरुआत का सबसे सही समय, सबसे सही वेला और मुहूर्त होता है। और इस पर शनि की साढ़ेसाती भी बेअसर रहती है। इसलिए आइए, हम प्रभु का स्मरण कर आत्मविकास की नई शुरुआत करें… जय श्री कृष्ण!

ॐ पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्न्मदुचयते

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूरनमेवः वाशिशय्ते !

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