प्रश्न : यदि इस संसार में इतना दुःख है तो ईश्वर ने यह सृष्टि ही क्यों रची?
उत्तर : ईश्वर ने यह दुनिया बनायी इसके पीछे का कारण हमारी अर्थात जीवात्मा की ‘भोक्ता एवं नियन्ता’ बनने की स्वार्थपूर्ण इच्छा थी। जिस प्रकार से एक छोटा बच्चा अपने पिता की नकल करके या उनके समान व्यवहार करके खुद को पिता के समान समझदार व बड़ा बताना चाहता है उसी प्रकार से जीवात्माएँ भी स्वयं को भोक्ता तथा नियन्ता के समान दर्शाना चाहती थीं। उनकी इन्हीं इच्छाओं को समझते हुए ईश्वर ने अपनी माया के द्वारा इस सृष्टि की रचना की।
यह जगत एक मेले के सामान है जहाँ हम अपने परम पिता परमेश्वर के साथ घूमने आये हैं। जब हम यह भूल जाते हैं की यह मेला सत्य नहीं है और हमें अपने परमपिता के पास वापिस जाना है, तब हम यहाँ दुःख पाते हैं। परन्तु जब हम श्रीकृष्ण अर्थात परमेश्वर से अपने वास्तविक सम्बन्ध को पुनः स्मरण कर लेते हैं तथा इस मेले की असत्यता को समझ जाते हैं तब हम मेले की सैर करके (पूरी तरह मेले से अनासक्त रहते हुए) ईश्वर के पास भगवद्धाम वापिस लौट जाते हैं|
हम सभी जीवात्माएँ इस सृष्टि में ईश्वर की सेवा के लिए ही अस्तित्व रखती हैं। यदि हम यह सेवा नहीं कर पाते हैं तथा स्वयं को भौतिक जगत के प्रति अपनी आसक्ति से भी मुक्त नहीं करा पाते हैं तो यही इस संसार में हमारे दु:खों का कारण बन जाता है। श्रीकृष्ण की ओर उन्मुख होना एवं उनकी महिमा को जानने का प्रयत्न करना, इसी से समस्त कष्टों एवं चिंताओं से मुक्ति संभव है।